Saturday, December 13, 2008

किसका दोस्त अमेरिका....

बचपन में एक कहानी पढ़ते थे...दो बिल्लियां रोटी के एक टुकड़े के लिए आपस में लड़ रहीं थी। दोनों के बीच उस रोटी के टुकड़े को लेकर कोई समझौता नहीं हो पा रहा था...किसी की समझ में ये नहीं आ रहा था कि इस झगड़े का निपटारा कैसे हो! इतने में पास खड़ा एक बंदर आया और बोला ऐसे मामले तो मैं अक्सर निपटाता रहता हूं...इसे भी चुटकी बजा कर निपटा दूंगा। जंगल के दूसरे जानवर दंग...आखिर बंदर महाशय एक तराजू लेकर आए और रोटी के दो टुकड़े कर दोनों पलड़ों पर एक-एक टुकड़ा डाला। एक टुकड़ा बड़ा था सो उसमें से थोड़ा तोड़ा और खुद खा लिया...यह प्रक्रिया वो तब तक दोहराते रहे जब तक कि कुछ बचा नहीं। जब तक ये बात बिल्लियों की समझ में आती तब तक काफी देर हो चुकी थी। हिंदुस्तान आतंकवाद की आग में पिछले दो दशकों से झुलस रहा है। अब यह जम्मू-कश्मीर से निकलकर देश के दूसरे हिस्सों में भी पहुंच चुकी है। अहमदाबाद, जयपुर, दिल्ली, बैंगलुरू में सिलसिलेवार बम धमाके हुए...न जाने कितने ही घरों की रौनक हमेशा के लिए फीकी हो गई। लेकिन 26 नवंबर 2008 को जो मुंबई में हुआ...उसने पूरे देश को इस समस्या पर गंभीरता से सोचने पर मजबूर कर दिया। इस आतंकी हमले का तांडव कुल 60 घंटे तक चला और 188 लोगों की जान गई। शुरुआती जांच से पता चला कि इस आंतकी वारदात को पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा ने अंजाम दिया है। भारत सरकार ने तत्काल पाकिस्तान ने 20 आतंकियों को सौंपने की गुजारिश की...वहां के आईएसआई चीफ को भारत भेंजने की अपील की...आतंकी संगठनों पर नकेल कसने की बात कहीं। लेकिन पाकिस्तान का रवैया हमेशा की तरह नाकारात्मक रहा। पाकिस्तान यह तक मानने को तैयार नहीं था कि मुंबई में मारे गए आतंकियों का उससे कुछ लेना-देना है, लेकिन अमेरिकी दबाव में आकर उसे यह मानना पड़ा। अमेरिका की विदेश मंत्री कोंडोलीजा राइस भारत दौरें पर आईं और यहां के प्रधानमंत्री, विदेश मंत्री और विपक्ष के नेता लालकृष्ण आडवाणी से मिलीं...साथ ही आतंकवाद से लड़ने में भारत की मदद का भरोसा दिया और पाकिस्तान के लिए रवाना हो गईं...वहां भी उन्होंने राष्ट्रपति जरदारी, प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री से मुलाकात किया...क्या बात हुई यह तो खुलकर सामने नहीं आई लेकिन मुलाकत के बाद कोंडोलीजा की तरफ से जो बयान आए उससे इतना जरुर लगा कि अमेरिका की कथनी और करनी बिल्कुल उस बंदर की तरह है जो दो के झगड़े में अपना फायदा देख रहा है। हाल ही में एक टीवी इंटरव्यू में कोडोंलीजा राइस ने कहा- " हम आतंकवाद से लड़ने के अपने अनुभव से भारत को अवगत कराने जा रहे हैं। मैं समझती हूं कि भारत हमारी पेशकश को स्वीकार करने जा रहा है। इससे आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक मुहिम मजबूत होगी। "अगर वाकई अमेरिका आतंकवाद को खत्म करना चाहता है तो क्यों नहीं पाकिस्तान को सीधे मुंह आतंकी संगठनों पर लगाम कसने की नसीहत देता है। क्या अमेरिका को पता नहीं है कि पाकिस्तान के भीतर कहां-कहां और कितने आतंकियों के ट्रेनिंग कैंप चल रहे हैं? अमेरिका क्यों नहीं कार्रवाई करता है? 9/11 के बाद अमेरिका ने एक आतंकी संगठनों की सूची जारी की थी कि जिसमें कुल 44 नाम थे...जिसमें 4 संगठन पाकिस्तान की जमीन से चल रहे थे। इनमें लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद का भी नाम शामिल था। लेकिन हुआ क्या अमेरिका के दबाव में पाकिस्तानी हुकूमत ने इन पर बैन लगाया और ये फिर नाम बदल कर अपना काम पहले की तरह करने लगे। क्या अमेरिका को ये पता नहीं था कि लश्कर-ए-तैयबा जमात-उल-दावा के रुप में पाकिस्तान की जमीन से अपने मंसूबों को अंजाम दे रहा है। सच तो ये कि अमेरिका को सब मालूम है लेकिन वो कुछ देखना और सुनना नहीं चाहता है। लेकिन जब कोंडोलीजा राइस से ये पूछा गया कि क्या अमेरिका पाकिस्तान के साथ भी अपने अनुभवों को बांटेगा तो उनका जवाब कुछ इस तरह से था- "यह स्पष्ट है कि कि हम दोनों देशों के साथ सूचनाओं का आदान-प्रदान करते रहे हैं। हम इन दोनों के साथ मिलकर काम करते रहे हैं। एक ओर जहां पाकिस्तान से हम कार्रवाई की उम्मीद करते हैं, वहीं भारत से सहयोग की उम्मीद करते हैं। मुझे लगता है कि अगर ऐसा होता है तो दोषियों को सजा दिलाने में आसानी होगी। " कोंडोलीजा राइस का यह बयान इस बात की ओर साफ इशारा करता है कि अमेरिकी नीति दोनों देशों के साथ बेहतर रिश्ते बनाए रखने की है। नहीं तो वो खुलकर पाकिस्तान को कहता कि अब दिखावा बंद करो और इन आतंकी संगठनों पर कार्रवाई करो जो बेगुनाहों का खून बहा रहे हैं। अमेरिका ने ऐसा कुछ नहीं किया। भारतीय दबाव में आकर पाकिस्तान ने हालांकि कुछ लश्कर के लोगों को गिरफ्तार किया है जिसमें एक जाकी-उर-रहमान लखवी भी है। इसे ही मुंबई ब्लास्ट का मास्टरमांइड माना जा रहा है। लेकिन इसकी गिरफ्तारी का क्या मतलब है ये तो पाकिस्तान ही बेहतर जानता है...हो सकता है लखवी को कुछ दिनों तक सरकारी मेहमान बनाकर किसी गेस्ट हाउस में रखा जाए और मामला थोड़ा ठंडा पड़ते ही उसे छोड़ दिया जाए। इसी तरह जैश-ए-मोहम्मद के सरगना मौलाना मसूद अजहर को उसके घर में ही नजरबंद कर दिया गया है। इस नज़रबंदी और गिरफ्तारी के क्या मायने हैं? क्या कार्रवाई भी इसी तर्ज पर हो रही है। आतंकवाद के खिलाफ जंग में अमेरिका का पाकिस्तान खास सहयोगी रहा है। अफगानिस्तान में तालिबान के खिलाफ जंग में पाकिस्तानी जमीन की अहम भूमिका है। यहां से चीन पर भी आसानी से नज़र रखी जा सकती है। दक्षिण एशिया में प्रभुत्व के लिए अमेरिका के लिए भला पाकिस्तान से अच्छी जमीन और कहां मिल सकती है। इसलिए अमेरिका किसी कीमत पर पाकिस्तान को नाराज करना नहीं चाहता। अस्थिर पाकिस्तान भारत के लिए खतरा है अमेरिका के लिए नहीं...अमेरिका के लिए तो भारतीय बाज़ार और यहां का मध्यम वर्ग मायने रखता है। अमेरिका अपनी जरुरतों को अच्छी तरह से समझ रहा है इसीलिए वो सिर्फ अपने फायदे को देख रहा है न कि भारत में पाकिस्तान की जमीन से फैलते आतंकवाद को।

1 comment:

Dr. R. Prakash said...

अमेरिकी नीति और उसके चरित्र की आपने सही व्याख्या की है। लेकिन ओबामा के हाल की घोषणाओं का क्या मतलब निकाला जाए।