बाघ को उत्तेजित करने के लिए वियाग्रा दिया जा रहा है। ये मजाक नहीं सच है और ऐसा चीन में हो रहा है। चीन के जियांग्सी प्रांत के जियुजियांग चिड़ियाघर में ऐसा किया जा रहा है। इस चिड़ियाघर में एक बाघिन है...यहां कोई बाघ नहीं है। इसलिए एक दूसरे चिड़ियाघर से एक बाघ लाया गया है। जिससे इन दोनों का मिलन करवाया जा सके और इनकी आबादी बढ़ाई जाए। लेकिन दूसरे चिड़ियाघर से आए बाघ के नया माहौल रास नहीं आ रहा है, इसलिए उनका अब तक मिलन नहीं हो पाया है। चिड़ियाघर के अधिकारियों का कहना है कि बाघिन की उम्र प्रजनन के लिए उपयुक्त है, इसलिए दोनों को ही सही खान-पान दिया जा रहा है। इसके साथ ही बाघ को उत्तेजित करने के लिए वियाग्रा भी दिया जा रहा है। चीन में चल रहे इस प्रयास का क्या नतीजा निकलेगा ये तो पता नहीं , पर अपने देश में भी बाघों की स्थिति अच्छी नहीं है।
आज से करीब सौ साल पहले भारत में करीब 40 हज़ार बाघ थे...लेकिन 2008 में इनकी तादाद घट कर 1, 411 हो गई है। भारत सरकार के आंकड़ों के मुताबिक पिछले पांच साल में बाघों की संख्या में भारी गिरावट दर्ज की गई है। 2002 में हुई गिनती के मुताबिक यहां कुल 3, 642 बाघ थे। भारत में विश्व के 40 फीसदी बाघ रहते हैं और 17 राज्यों में बाघों के लिए 23 संरक्षित क्षेत्र हैं। मध्य प्रदेश में इनकी संख्या सबसे अधिक 300 है। उत्तराखंड में 178, उत्तर प्रदेश में 109 और बिहार में 10 बाघ होने का अनुमान हैं। इसी तरह आंध्र प्रदेश में 95, छत्तीसगढ़ में 26, महाराष्ट्र में 103, उड़ीसा में 45 और राजस्थान में 32 बाघ होने का आकलन किया गया है। बाघ संरक्षण के तमाम उपायों के बावजूद इनकी आबादी बढ़ने के बजाए घट ही रही है। सिर्फ तमिलनाडु ही एक ऐसा राज्य है जहां बाघों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है। पिछले पाँच साल में यहां बाघों की गिनती 60 से बढ़कर 76 हो गई है। प्रतिबंध के बावजूद भारत में बाघों का शिकार बड़े पैमाने पर किया जाता है। इन्हें खाल, हड़्डियों और अंगों के लिए मारा जाता है। बाघ की खाल से कीमती कपड़े बनाए जाते हैं जबकि, इसकी हड्डियों और अंगों का इस्तेमाल दवा बनाने में होता है। इनका सबसे बड़ा बाज़ार चीन है जहां इनके लिए साढ़े बारह हज़ार डॉलर तक मिल जाते हैं। जिस तरह से बाघों की संख्या घट रही है और यही चलता रहा तो वो दिन दूर नहीं जब हम अपनी आनेवाली पीढ़ी को इनके बारे में सिर्फ चित्रों और एनिमेशन के जरिए ही बता पाएंगे? जैसा आज हम डायनासोर के बारे में बताते है। इस विलुप्त होते जानवर को बचाने के लिए सिर्फ सरकारी प्रयास ही काफी नहीं हैं ...हमें भी कुछ करना होगा? ताकि इन्हें भी जीने का पूरा हक मिले...इन्हें भी अपनी आबादी बढ़ाने का पूरा मौका मिले। अभी हमारे देश में चीन जैसी स्थिति नहीं आई है कि बाघों को वियाग्रा दिया जाए...लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि हालात बेहतर हैं। वक्त संभलने का है...वक्त बाघों को बचाने का है।
Saturday, December 20, 2008
Tuesday, December 16, 2008
आतंकवाद, आईएसआई और राजनीति
26 नवंबर को मुंबई पर हुए आतंकी हमले के बाद आतंकवाद और जनसंहार के हथियारों पर अमेरिकी आयोग की एक रिपोर्ट आयी। 'वर्ल्ड एट रिस्क' नाम की इस रिपोर्ट में कहा गया कि आतंकवाद की सभी सड़कें पाकिस्तान में एक-दूसरे से मिलती हैं। भारत ही नहीं दुनिया के ज्यादातर देश ऐसा ही सोचते हैं। खुद पाकिस्तान का दोस्त अमेरिका भी यही सोचता है। वहीं के सीनेटर जॉन केरी ने अपनी भारत यात्रा के दौरान कहा कि आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं करने पर पाकिस्तान को मिलने वाली तमाम अमेरिकी आर्थिक और सैन्य मदद पर अंकुश लगा दिया जाएगा। उनका यह भी कहना था कि इस बात के ठोस प्रमाण हैं कि मुंबई में आतंकी घटना को अंजाम देने के लिए हमलावर पाकिस्तान से ही आये थे। लेकिन क्या कैरी की इस चेतावनी का पाकिस्तान पर कोई असर पड़ेगा ? इस तरह के बयान भारत आकर अमेरिकी मंत्री और सीनेटर पहले भी देते रहे हैं। लेकिन होता क्या है...पूरी दुनिया को पता है। अमेरिका के पूर्व मंत्री कोलिन पावेल ने सीएनएन को दिए एक इंटरव्यू में कहा कि 2001 में भारतीय संसद पर हमले के बाद पाकिस्तान ने हमें लश्कर के सफाए का आश्वासन दिया था, लेकिन वह वादा निभा नहीं सका। यानी अमेरिका को भी पाकिस्तान के वादे की हकीकत पता है। 26/11 के बाद भारत और पाकिस्तान के रिश्तों में काफी खटास आई है। लेकिन इस सवाल का जवाब भी खोजना होगा कि क्या पाकिस्तानी हुकूमत आतंकी संगठनों की नकेल कस पाएगी? हाल ही में पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी ने एक इंटरव्यू में कहा कि आतंकी संगठनों के पहले आईएसआई से संबंध थे...अब नहीं हैं। पहली बार किसी पाकिस्तानी राष्ट्रपति ने माना कि आईएसआई के आतंकी संगठनों से संबंध रहे हैं। पाकिस्तान की राजनीतिक व्यवस्था में सेना की भूमिका अहम है। सेना की दो खुफिया एजेंसियां आईएसआई और एमआई पाकिस्तान की व्यवस्था के भीतर एक व्यवस्था हैं। इनमें सेना के अफसर तैनात रहते हैं और उन पर सेनाध्यक्ष का सीधे नियंत्रण रहता है। पाकिस्तान में सत्ता का ढ़ाचा कुछ इस तरह है कि अगर राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री दोनों हाथ मिलाकर एक तरफ भी हो जाएं, तो भी सेनाध्यक्ष अपनी चलाता है और अगर राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के बीच न बनती हो, फिर तो बिल्लियों के झगड़े में सेनाध्यक्ष बंदर की भूमिका में रहता है। पाकिस्तान में सब बोल रहे हैं। राष्ट्रपति जरदारी बोल रहे हैं...प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी बोल रहे हैं...आतंकी संगठनों के मुखिया बोल रहे हैं...सिर्फ एक आदमी नहीं बोल रहा है और वो हैं पाक आर्मी चीफ कियानी। पाकिस्तानी सेनाध्यक्ष की खामोशी का हमेशा गहरा मतलब होता है। आखिर इतने डेवलपमेंट के बावजूद कियानी खामोश क्यों हैं? उनके दिमाग में क्या चल रहा है? वो आईएसआई के भी चीफ रहे हैं...यानी उनकी पकड़ आईएसआई पर काफी मजबूत होगी ? और आईएसआई के आतंकी संगठनों से रिश्ते की बात तो जगजाहिर है। खुद आईएसआई और पाक सेना के रिटायर्ड अफसर आतंकी संगठनों के कैंपो में नौजवानों को आतंक की ट्रेनिंग देते हैं। पूरी दुनिया को पता है कि पाकिस्तान के भीतर कहां और कितने आतंकि ट्रेनिंग कैंप चल रहे हैं। भारत के 26/11 के बाद संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् ने पाकिस्तान स्थित लश्कर-ए-तैयबा यानी जमात-उद-दावा पर प्रतिबंध लगा दिया। इस प्रतिबंध का मतलब साफ है कि दुनिया ने भारत के इस तर्क पर अपनी मुहर लगा दी कि जमात-उद-दावा और लश्कर -ए-तैयबा की जड़ें दो नहीं बल्कि एक ही हैं। लेकिन अब पाकिस्तान अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी के दबाव में झुकते हुए दावा के खिलाफ कार्रवाई का नाटक कर रहा है। इसके तहत इसके सभी दफ्तरों को सील किया जाना था। इसके खातों को सील किया जाना था और आतंकी करार दिए व्यक्तियों को गिरफ्तार कर उन पर मुकदमा चलाया जाना था। उनकी यात्रा, हथियार व धन जुटाने और मंसूबों को अमलीजामा पहनाने की क्षमता सीमित करनी थी...यानी उनके पर पूरी तरह से कतरने थे। लेकिन दिखाने के लिए कुछ गिरफ्तारियां हुईं...कुछ दफ्तर सील हुए...अब गिरफ्तार लोगों के छूटने का सिलसिला भी साथ ही शुरू हो गया है। अगर अंतर्राष्ट्रीय दबाव में कुछ कड़े कदम उठाए भी गए तो ये आतंकी संगठन अपना नाम और चोला बदल कर वहां काम करते रहेंगे...क्योंकि उन्हें एक ऐसी व्यवस्था से समर्थन मिल रहा है जिसपर वहां किसी लोकतांत्रिक ढ़ंग से चुनी गई सरकार का कोई बस नहीं चलता। लश्कर पर प्रतिबंध लगा तो जमात-उद-दावा बना और इस पर प्रतिबंध लगा तो नाम बदलकर किसी और संगठन के रुप में लश्कर पाकिस्तान की जमीन से आतंक की फसल तैयार करता रहेगा। लश्कर पर ये कोई पहली बार प्रतिबंध नहीं लगा है। 2001, 2002 और 2005 में प्रतिबंध लग चुके हैं...लेकिन इसके लोग अपना काम पहले की तरह ही कर रहे हैं।पड़ोस में तैयार हो रही आतंक की फसल को नष्ट करने के लिए तो इसकी जड़ों में मट्ठा डालना होगा। आईएसआई के आतंकी संगठनों से रिश्तों को हमेशा के लिए खत्म करना होगा। इसके आतंकी संगठनों से रिश्ते को उजागर करना होगा। आईएसआई के स्थाई रुप से पर कतरने होंगे। ये सिर्फ भारत को नहीं पूरी अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी को करना होगा...नहीं तो वो दिन दूर नहीं जब उनके घर भी आतंक की आग के लपेटे में होंगे। क्योंकि आतंक का न तो कोई मजहब होता है और न ही दीवार।
Monday, December 15, 2008
खतरे में दुनिया
आज दुनिया में पाकिस्तान की पहचान क्या है ? आतंकवादियों का पनाहगार देश...रहने के लिहाज से दुनिया का सबसे खतरनाक देश या फिर कुछ और ! पाकिस्तान पर ऐसे आरोप लगते रहते हैं। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री गॉर्डन ब्राउन ने 14 दिसंबर को इस्लामाबाद में कहा- "ब्रिटिश पुलिस ने हाल के वर्षों में हुई बड़ी आतंकी साजिशों की जांच के दौरान तीन चौथाई मामलों में पाकिस्तान स्थित अल-कायदा को शामिल पाया"। भारत ही नहीं पूरी दुनिया आतंकवाद का कनेक्शन किसी-न-किसी रुप में पाकिस्तान से देख रही है। हाल ही में एक किताब आई है... द मैन फ्राम पाकिस्तान-द ट्रू स्टोरी ऑफ वल्डर्स मोस्ट डेंजरस न्यूक्लियर स्मगलर ए क्यू खान। इस किताब में दावा किया गया है कि अमेरिका में 11 सितंबर के हमले से महज़ एक महीने पहले पाकिस्तान के दो परमाणु वैज्ञानिकों ने अलकायदा नेता ओसामा बिन लादेन से मुलाकात की थी और परमाणु हथियारों की पेशकश की। ये दोनों वैज्ञानिक ए क्यू खान के काफी करीबी बताए जाते हैं। इस किताब में कहा गया है कि चौधरी अब्दुल मजीद और सुल्तान बशिरुद्दीन महमूद अगस्त 2001 में कंधार में तालिबान के मुख्यालय गए थे और तीन दिन बिन लादेन के साथ बिताए थे, जो व्यापक विनास के हथियार हासिल करने का इच्छुक था। इस किताब से पहले अमेरिकी संसदीय समिति की एक रिपोर्ट आई थी। जिसमें कहा गया कि आतंकी संगठन अगले पांच साल के भीतर परमाणु हथियार से हमले की योजना बना रहे हैं। समिति ने ये भी कहा है कि पाकिस्तान के परमाणु हथियार दुनिया के लिए खतरा बने हुए हैं। इससे पहले संयुक्त राष्ट्र के न्यूक्लियर मोनिटरिंग एजेंसी में इस बात का खुलासा किया गया था कि पाकिस्तान से लगातार परमाणु तकनीक लीक हो रही है। इसका खुलासा आईएईए के दस्तावेजों से हुआ। अब क्या बड़ा सवाल ये है कि क्या परमाणु हथियार आतंकियों के हाथ लग चुके हैं ? अगर परमाणु हथियार आतंकियों के हाथ लग चुके हैं तो उनका अगला निशाना कौन होगा? उसका कंट्रोल किसके पास है ? एक ये भी सवाल आ रहा है कि कहीं इन आतंकियों के परमाणु हथियार पाकिस्तान के परमाणु हथियारों से ज्यादा ताकतवर तो नहीं हैं ? पाकिस्तान के पास जो परमाणु हथियार हैं वो पूरी तरह से सुरक्षित हैं या नहीं ? भारत पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठनों के हमेशा निशाने पर रहा है। इनके हमले लगातार बढ़ रहे हैं यानी सबसे ज्यादा खतरा भारत के सामने हैं। पाकिस्तानी जमीन से उपजते आतंकवाद की आग में भारत सबसे अधिक झुलसा है। ऐसे में भारत को जोश से नहीं पूरे होश से काम लेना होगा...क्योंकि दोस्त बदले जा सकते हैं पड़ोसी नहीं। इतिहास बनाया या बदला जा सकता है...भूगोल नहीं।
Saturday, December 13, 2008
किसका दोस्त अमेरिका....
बचपन में एक कहानी पढ़ते थे...दो बिल्लियां रोटी के एक टुकड़े के लिए आपस में लड़ रहीं थी। दोनों के बीच उस रोटी के टुकड़े को लेकर कोई समझौता नहीं हो पा रहा था...किसी की समझ में ये नहीं आ रहा था कि इस झगड़े का निपटारा कैसे हो! इतने में पास खड़ा एक बंदर आया और बोला ऐसे मामले तो मैं अक्सर निपटाता रहता हूं...इसे भी चुटकी बजा कर निपटा दूंगा। जंगल के दूसरे जानवर दंग...आखिर बंदर महाशय एक तराजू लेकर आए और रोटी के दो टुकड़े कर दोनों पलड़ों पर एक-एक टुकड़ा डाला। एक टुकड़ा बड़ा था सो उसमें से थोड़ा तोड़ा और खुद खा लिया...यह प्रक्रिया वो तब तक दोहराते रहे जब तक कि कुछ बचा नहीं। जब तक ये बात बिल्लियों की समझ में आती तब तक काफी देर हो चुकी थी। हिंदुस्तान आतंकवाद की आग में पिछले दो दशकों से झुलस रहा है। अब यह जम्मू-कश्मीर से निकलकर देश के दूसरे हिस्सों में भी पहुंच चुकी है। अहमदाबाद, जयपुर, दिल्ली, बैंगलुरू में सिलसिलेवार बम धमाके हुए...न जाने कितने ही घरों की रौनक हमेशा के लिए फीकी हो गई। लेकिन 26 नवंबर 2008 को जो मुंबई में हुआ...उसने पूरे देश को इस समस्या पर गंभीरता से सोचने पर मजबूर कर दिया। इस आतंकी हमले का तांडव कुल 60 घंटे तक चला और 188 लोगों की जान गई। शुरुआती जांच से पता चला कि इस आंतकी वारदात को पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा ने अंजाम दिया है। भारत सरकार ने तत्काल पाकिस्तान ने 20 आतंकियों को सौंपने की गुजारिश की...वहां के आईएसआई चीफ को भारत भेंजने की अपील की...आतंकी संगठनों पर नकेल कसने की बात कहीं। लेकिन पाकिस्तान का रवैया हमेशा की तरह नाकारात्मक रहा। पाकिस्तान यह तक मानने को तैयार नहीं था कि मुंबई में मारे गए आतंकियों का उससे कुछ लेना-देना है, लेकिन अमेरिकी दबाव में आकर उसे यह मानना पड़ा। अमेरिका की विदेश मंत्री कोंडोलीजा राइस भारत दौरें पर आईं और यहां के प्रधानमंत्री, विदेश मंत्री और विपक्ष के नेता लालकृष्ण आडवाणी से मिलीं...साथ ही आतंकवाद से लड़ने में भारत की मदद का भरोसा दिया और पाकिस्तान के लिए रवाना हो गईं...वहां भी उन्होंने राष्ट्रपति जरदारी, प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री से मुलाकात किया...क्या बात हुई यह तो खुलकर सामने नहीं आई लेकिन मुलाकत के बाद कोंडोलीजा की तरफ से जो बयान आए उससे इतना जरुर लगा कि अमेरिका की कथनी और करनी बिल्कुल उस बंदर की तरह है जो दो के झगड़े में अपना फायदा देख रहा है। हाल ही में एक टीवी इंटरव्यू में कोडोंलीजा राइस ने कहा- " हम आतंकवाद से लड़ने के अपने अनुभव से भारत को अवगत कराने जा रहे हैं। मैं समझती हूं कि भारत हमारी पेशकश को स्वीकार करने जा रहा है। इससे आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक मुहिम मजबूत होगी। "अगर वाकई अमेरिका आतंकवाद को खत्म करना चाहता है तो क्यों नहीं पाकिस्तान को सीधे मुंह आतंकी संगठनों पर लगाम कसने की नसीहत देता है। क्या अमेरिका को पता नहीं है कि पाकिस्तान के भीतर कहां-कहां और कितने आतंकियों के ट्रेनिंग कैंप चल रहे हैं? अमेरिका क्यों नहीं कार्रवाई करता है? 9/11 के बाद अमेरिका ने एक आतंकी संगठनों की सूची जारी की थी कि जिसमें कुल 44 नाम थे...जिसमें 4 संगठन पाकिस्तान की जमीन से चल रहे थे। इनमें लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद का भी नाम शामिल था। लेकिन हुआ क्या अमेरिका के दबाव में पाकिस्तानी हुकूमत ने इन पर बैन लगाया और ये फिर नाम बदल कर अपना काम पहले की तरह करने लगे। क्या अमेरिका को ये पता नहीं था कि लश्कर-ए-तैयबा जमात-उल-दावा के रुप में पाकिस्तान की जमीन से अपने मंसूबों को अंजाम दे रहा है। सच तो ये कि अमेरिका को सब मालूम है लेकिन वो कुछ देखना और सुनना नहीं चाहता है। लेकिन जब कोंडोलीजा राइस से ये पूछा गया कि क्या अमेरिका पाकिस्तान के साथ भी अपने अनुभवों को बांटेगा तो उनका जवाब कुछ इस तरह से था- "यह स्पष्ट है कि कि हम दोनों देशों के साथ सूचनाओं का आदान-प्रदान करते रहे हैं। हम इन दोनों के साथ मिलकर काम करते रहे हैं। एक ओर जहां पाकिस्तान से हम कार्रवाई की उम्मीद करते हैं, वहीं भारत से सहयोग की उम्मीद करते हैं। मुझे लगता है कि अगर ऐसा होता है तो दोषियों को सजा दिलाने में आसानी होगी। " कोंडोलीजा राइस का यह बयान इस बात की ओर साफ इशारा करता है कि अमेरिकी नीति दोनों देशों के साथ बेहतर रिश्ते बनाए रखने की है। नहीं तो वो खुलकर पाकिस्तान को कहता कि अब दिखावा बंद करो और इन आतंकी संगठनों पर कार्रवाई करो जो बेगुनाहों का खून बहा रहे हैं। अमेरिका ने ऐसा कुछ नहीं किया। भारतीय दबाव में आकर पाकिस्तान ने हालांकि कुछ लश्कर के लोगों को गिरफ्तार किया है जिसमें एक जाकी-उर-रहमान लखवी भी है। इसे ही मुंबई ब्लास्ट का मास्टरमांइड माना जा रहा है। लेकिन इसकी गिरफ्तारी का क्या मतलब है ये तो पाकिस्तान ही बेहतर जानता है...हो सकता है लखवी को कुछ दिनों तक सरकारी मेहमान बनाकर किसी गेस्ट हाउस में रखा जाए और मामला थोड़ा ठंडा पड़ते ही उसे छोड़ दिया जाए। इसी तरह जैश-ए-मोहम्मद के सरगना मौलाना मसूद अजहर को उसके घर में ही नजरबंद कर दिया गया है। इस नज़रबंदी और गिरफ्तारी के क्या मायने हैं? क्या कार्रवाई भी इसी तर्ज पर हो रही है। आतंकवाद के खिलाफ जंग में अमेरिका का पाकिस्तान खास सहयोगी रहा है। अफगानिस्तान में तालिबान के खिलाफ जंग में पाकिस्तानी जमीन की अहम भूमिका है। यहां से चीन पर भी आसानी से नज़र रखी जा सकती है। दक्षिण एशिया में प्रभुत्व के लिए अमेरिका के लिए भला पाकिस्तान से अच्छी जमीन और कहां मिल सकती है। इसलिए अमेरिका किसी कीमत पर पाकिस्तान को नाराज करना नहीं चाहता। अस्थिर पाकिस्तान भारत के लिए खतरा है अमेरिका के लिए नहीं...अमेरिका के लिए तो भारतीय बाज़ार और यहां का मध्यम वर्ग मायने रखता है। अमेरिका अपनी जरुरतों को अच्छी तरह से समझ रहा है इसीलिए वो सिर्फ अपने फायदे को देख रहा है न कि भारत में पाकिस्तान की जमीन से फैलते आतंकवाद को।
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