Tuesday, April 20, 2010

ये खतरा टल जाए !

आइसलैंड में ज्वालामुखी के फटने से फैली राख ने यूरोप की अर्थव्यवस्था को चौपट करना शुरू कर दिया है। विमान कंपनियों पर इसका साफ असर दिख रहा है। दुनिया भर की विमान कंपनियों को रोज करीब 27 करोड़ डॉलर का नुकसान हो रहा है। भारतीय विमान कंपनियों को भी अब तक एक अरब रुपये से अधिक का नुकसान हो चुका है। भारत के विभिन्न होटलों और एयरपोर्ट पर 40 हज़ार से अधिक यात्री फंसे हुए हैं। वेस्ट इंडीज में 30 अप्रैल से शुरू होनेवाले 20-20 वर्ल्ड कप पर भी संकट के बादल छाये हुए हैं। फुटबॉल, फॉर्मूला, एथलेटिक्स के करीब 150 आयोजन टाले जा रहे हैं। अगर बात इतनी तक रहती तो भारत के लिए कोई अधिक चिंता की बात नहीं थी। लेकिन ख़तरा इससे कहीं और बड़ा है। मौसम विशेषज्ञों का मानना है कि यदि राख के बादल एक माह तक आसमान में बने रहे तो इसका मानसून पर असर पड़ सकता है। राष्ट्रीय मौसम केंद्र के महानिदेशक का कहना है कि राख के बादल जिस दिशा में बढ़ रहे हैं, उसे देखते हुए यह कहा जा सकता है कि अगले एक पखवाड़े में वे मध्य एशिया को ढंक लेंगे। आइसलैंड के ज्वालामुखी से निकली राख ने अगर मानसून को किसी भी तरह से अपनी चपेट में ले लिया तो इसका भारत पर गंभीर असर पड़ेगा। भारत में मानसून के गड़बड़ाने का मतलब है पूरी अर्थव्यवस्था का पटरी से उतरना। भले ही कृषि क्षेत्र का हमारे सकल घरेलु उत्पाद में करीब 18 फीसदी का योगदान हो, लेकिन इसकी अप्रत्यक्ष भूमिका कहीं ज्यादा बड़ी और विस्तृत है। भारत में कृषि अपने आप में उत्पादन या रोजगार का साधन भर होने से कहीं ज्यादा जीवन जीने का जरिया है। तकरीबन 60 प्रतिशत आबादी कृषि क्षेत्र में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से निर्भर है। इसलिए मानसून के गड़बड़ाने का मतलब है अनुमान से कई गुना ज्यादा लोगों का प्रभावित होना यानि हमारी रोजमर्रा की समूची व्यवस्था का पलट जाना। हमारी 87 फीसदी खाद्य सुरक्षा, 40 फीसदी बिजली उत्पादन और 85 फीसदी से ज्यादा पेयजल की उपलब्धता मानसून पर ही टिकी है। पीने के पानी और भोजन की व्यवस्था अगर हमने किसी तरह से कर भी ली तो पशुओं का जीवन मुश्किल हो जाएगा। उद्योग धंधे चौपट हो जाएंगे, क्योंकि हर दिन उद्योगों के लिए भी 20,000 करोड़ गैलन पानी की जरूरत पड़ती है और यह आपूर्ति मानसून से ही होती है यानि पूरी व्यवस्था में कोहराम मच जाएगा। देश में खाद्यानों का उत्पादन कम होगा। साग-सब्जी नहीं उगेंगे यानि अनाजों की मांग बढ़ जाएगी और उत्पादन कम। फिर महंगाई आसमान पर होगी और खाने-पीने की जरुरी चीजें आम आदमी की पहुंच से दूर। ऐसी परिस्थितियां भूखमरी और गरीबी और बढ़ाएगी। हमारे यहां मानसून के मजबूत होने का मतलब है अर्थव्यवस्था का मजबूत होना और कमजोर होने का मतलब पर अर्थव्यवस्था का चरमराना। इसलिए, भगवान से हमें यही प्रार्थना करनी चाहिए की आइसलैंड के ज्वालामुखी से निकले राख का साया मानसून से दूर ही रहे।

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