Friday, February 13, 2009

नेता नहीं, लीडर चाहिए !

कई साल पहले की बात है। मैं बिहार के डुमरांव रेलवे स्टेशन पर एक पेड़ के नीचे बैठा अपनी ट्रेन का इंतजार कर रहा था। खुला आसमान...सूरज का तेज लोगों को पसीना-पसीना किए हुए था। पास ही एक हैंडपंप था...जहां लोगों की भारी भीड़ लगी हुई थी। दो लोग अपनी प्यास बुझाने के बाद...मेरे ही बगल में आकर बैठ गए और आपस में बातचीत करने लगे। एक ने कहा भाई, मैं तो बड़ा परेशान हूं..."बाबूजी ने बहन को पढ़ा लिखा कर इंजीनियर तो बना दिया...लेकिन अब उसके लिए लड़का कहां से खोजें ! इंजीनियर लड़की के लिए कम-से-कम डॉक्टर लड़का तो चाहिए ही! सिपाही का भी दहेज एक लाख रुपये और मोटर साइकिल मांग रहे हैं...बाबूजी ने तो सारी कमाई हमलोगों को पढ़ाने लिखाने में लगा दी। कोई भी इंजीनियर, डॉक्टर चार-पांच लाख से कम थोड़े ही लेगा। हमलोगों के पास रुपया है नहीं और अब किसी अच्छे लड़के के दरवाजे पर जाने की हिम्मत नहीं हो रही है...समझ में नहीं आ रहा है- क्या करें । " दूसरे ने कहा "बेवकूफ हो डॉक्टर, इंजीनियर और सिपाही-दारोगा न दहेज मांगेगा...हर गांव में दस लड़के कुर्ता-पाजामा पहन कर घूम रहें हैं...किसी भी ठीक-ठाक लड़के को देखकर शादी कर दो...आगे उसकी किस्मत"। इस घटना के करीब 15 साल से अधिक हो चुके हैं...लेकिन इसका मतलब अब धीरे-धीरे समझ में आ रहा है। तब बेरोजगारी और बेकारी ने हर गांव में कुछ लोगों को नेता बना दिया...आज उनकी तादाद सैकड़ों में हो गई है। इनका नेता बनना मजबूरी थी, लेकिन इनके पास दूसरा कोई रास्ता नहीं था। अब देश के अंदर न जाने कितने करोड़ नौजवान नेता बन गए हैं। समाजसेवा के लिए नहीं, बल्कि इसलिए की उनके पास कोई काम नहीं है। हज़ारों में किसी एक को कामयाबी मिलती है...उसका करियर संवरता है...लेकिन बाकी उम्मीदों का दामन पकड़े अपनी मंजिल की तलाश में भटक रहे हैं। देश में हर जगह नेता ही नेता दिखाई देते हैं, लेकिन एक भी ऐसा लीडर दिखाई नहीं देता जो इस देश को एक दिशा दे सके। ज्यादातर का एक ही मकसद दिखाई देता है, किसी तरह से उसे टिकट मिले और उसका जीवन संवरे। लेकिन कितनों का जीवन संवरेगा। राजनीति भी अब जमीन-जायदाद की तरह अपनी अगली पीढ़ी को ट्रांसफर की जा रही है, पहले भी होता रहा है। लेकिन अब स्वरुप थोड़ा बदल गया है। जिनको राजनीति विरासत में मिल रही है, उनके सोचने और काम करने का नजरिया जरा हट कर है। वो अच्छे पढ़े लिखे हैं...उनके सोचने का तरीका अलग है। ऐसे में गांव के कुर्ता-पाजामा धारी नेताओं को कहां और कितनी जगह मिलेगी ये भगवान ही बेहतर जानते होंगे। लोकसभा चुनाव में अब ज्यादा दिन नहीं हैं...प्रधानमंत्री के दावेदारों की भी कमी नहीं है। कई छोटी-बड़ी पार्टियां अपनी-अपनी अहमियत जताने में लगी हुई हैं। हर कोई यही दावा कर रहा है कि अगर उनकी सरकार बनीं तो वे ये कर देंगे...वो कर देंगे। आज के नेता जनता के बीच कम और टीवी शो में ज्यादा दिखाई देते हैं। जो ईमानदार और साफ-सुथरी छवी वाले हैं उनका जनाधार नहीं है...जिनका जनाधार है उनके अपने-अपने एजेंडे हैं। वो या तो राज्य विशेष की बात करते हैं या फिर किसी दूसरे एजेंडे को लेकर आगे बढ़ने की बात करते हैं। पूरे देश को साथ लेकर बहुत ही कम नेता चलने की बात करते हैं। काश ! कोई ऐसा लीडर होता जो इस देश के हर तपके की बात करता...विकास के झोंके आम आदमी तक पहुंचाता ? एक सवाल मेरे मन में रह-रह कर उठता है कि देश में नेता तो इतने पैदा हो गए हैं। लेकिन क्या कोई ऐसा लीडर नहीं है, जो पंडित नेहरु और सरदार पटेल जैसी सोच और वृहत दृष्टिकोण रखता हो...जिसमें लाल बहादुर शास्त्री जैसी सादगी हो...इंदिरा गांधी जैसी दृढ़ इच्छा शक्ति हो ! जिसमें महात्मा गांधी या लोकनायक जयप्रकाश नायारण जैसा त्याग हो !

1 comment:

एम अखलाक said...

विजय शंकर जी
डुमरांव में कहां घर है। ब्‍लाग पर फोटो होता तो यह नहीं पूछता। मेल कीजिएगा।

एम अखलाक