Monday, January 12, 2009

हाथियों पर मंदी की मार

मंदी की मार से क्या आदमी...क्या जानवर सभी परेशान हैं। भारत में सत्यम डूबी मंदी के चक्कर में...अमेरिका में 26 लाख लोगों की नौकरी गई मंदी के चक्कर में...यूरोप में लाखों लोगों की रोजी-रोटी गई मंदी के चक्कर में...तनख्वाह कम हो रही है मंदी के चक्कर में...नौकरियों से निकालने का सिलसिला जारी है- सब मंदी के चक्कर में। आर्थिक विकास का बुलबुला अब फूट चुका है। अब हर कोई भगवान से यही प्रार्थना कर रहे हैं- ये प्रभु इस मंदी से उबारो। मंदी का असर जिम्बाब्वे में तो इस कदर है कि वहां सैनिकों को खाने के लिए हाथी का मांस दिया जा रहा है यानी खाना तक देने के लिए पैसे नहीं हैं। हाथी का मांस दिए जाने के दो कारण हैं। एक तो हाथी का मांस वहां बहुत सस्ता है और दूसरा जिम्बाब्वे में हाथी आसानी से अपलब्ध हैं। कुछ दिनों पहले बीबीसी की वेब साइट पर जिम्बाब्वे में सैनिकों के खाने में हाथी का मांस दिए जाने की खबर छपी थी। एक अनुमान के मुताबिक जिम्बाब्वे में करीब एक लाख हाथी हैं और यह संख्या इतनी अधिक है कि आर्थिक संकट झेल रहे ज़िम्बाब्वे के जंगलों में इन्हें रखना कठिन साबित हो रहा है। हाथी का मांस परोसे जाने का सिलसिला पिछले साल जून में शुरु हुआ लेकिन हाल ही में इसमें बढ़ोत्तरी हुई है। ज़िम्बाब्वे के राष्ट्रीय जंगलों में 45 हज़ार हाथियों को रखने की सुविधा है यानी करीब 55 हज़ार हाथी ज्यादा हैं और यही तादाद वहां परेशानी पैदा कर रही है। जिम्बाब्वे के आर्थिक हालत फटेहाल हैं। जानकारों का कहना है कि देश में कई सरकारी कर्मचारियों की तनख़्वाह तो सिर्फ़ इतनी है कि उतने पैसों में वे घर से दफ्तर तक आना-जाना ही कर सकते हैं। ऐसे में समझा जा सकता है कि जानवरों का क्या हाल होगा? लोग कैसे अपना जीवन-यापन कर रहे होंगे? दुनिया के कुछ और हिस्सों में हो सकता है इससे भी और बदतर हालात हों!

3 comments:

Anonymous said...

अपने देश में भी हालात कुछ अच्छे नहीं हैं...

Anonymous said...

अपने देश के किसानों के दर्द के बारे में तो कोई बात ही नहीं करता...न अखबार वाले...न टीवी वाले और न ही नेता...कम से कम ब्लॉग पर तो उनकी बात कीजिए...उनके बारे में कुछ लिखिए।
रमेश, उड़ीसा

संगीता पुरी said...

लीजिए , अब मंदी की मार जानवरों तक भी पहुंच गयी....देखें , आगे आगे क्‍या होता है।