Sunday, September 12, 2010

भगवान अब माफ भी करो !

दिल्ली पर इन दिनों इंद्र देव कुछ ज्यादा ही मेहरबान हैं। सुबह हो या शाम, रात हो या दिन कभी भी बरसने लगते हैं। इंद्र देवता की इस मेहरबानी से दिल्ली में अफसरों से लेकर आम आदमी तक सब परेशान हैं। अफसर इस लिए परेशान हैं क्योंकि कॉमनवेल्थ गेम्स की तैयारियों को फाइनल टच दिया जाना बाकी है और आम आदमी इस लिए परेशान है क्योंकि उसे बारिश की वजह से कहीं आने-जाने में भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। लंबे-लंबे ट्रैफिक जाम में उसे रोज घंटों गुजारने पड़ते हैं। हालत ये हो गई है कि बूंद-बूंद को तरसने वाली यमुना नदी भी राजधानी में कहर बरपा रही है। यमुना नदी दिल्ली में अपना 32 साल पुराना रिकॉर्ड तोड़ेगी या नहीं...ये कुदरत पर छोड़ दीजिए क्योंकि हमने यमुना के क्षेत्र में अतिक्रमण किया है न कि उसने हमारे क्षेत्र में...नतीजा तो भुगतना होगा। कॉमनवेल्थ आयोजन समिति तो हर दिन इंद्र देव से यही प्रार्थना कर रही होगी कि प्रभू बहुत हुआ...अब शांत हो जाओ...
महाभारत काल में ब्रजवासियों को इंद्र के क्रोध का सामना करना पड़ा। इंद्र देव ने मूसलाधार बारिश से ब्रजवासियों को तहस-नहस करने का फैसला किया...तब भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी अंगुली पर उठा कर वहां के लोगों की रक्षा की। अगर इंद्र देव ऐसे ही बरसते रहे तो कॉमनवेल्थ गेम्स को कौन बचाएगा ? क्या चीन की तर्ज पर बादलों को आसमान में ही नष्ट या इधर-उधर करने की कोशिश की जाएगी ? या फिर स्टेडियम के ऊपर कोई गोवर्धननुमा इंतजाम किए जाएंगे ? वक्त बहुत कम बचा है ! लेकिन इतना भी कम नहीं कि कुछ किया ही न जा सके।
कॉमनवेलथ की जब भी बात आती है तो अक्सर राजीव गांधी के नेतृत्व में हुए एशियाड खेलों की चर्चा की जाती है। एशियाड खेल1982 यानि आज से करीब 28 साल पहले दिल्ली हुए थे। जिन लोगों ने उस दौर को देखा है उनका कहना है कि पूरी दिल्ली को दुल्हन की तरह सजाया गया था। कई नए स्टेडियम बनाए गए...सड़के बनीं और ये सब हुआ सिर्फ 2 साल के भीतर। उस समय भी स्टेडियम की छत के टपकने का एक मामला सामने आया। ये घटना खेल के उद्धाटन समारोह संपन्न होने के बाद की है। जैसे ही राजीव गांधी को स्टेडियम की छत टपकने की ख़बर मिली वो अपने दो साथियों अरुण नेहरू और अरुण सिंह के साथ स्टेडियम के लिए निकल पड़े। मूसलाधार बारिश जारी थी। अगले ही दिन जहां भारोत्तोलन प्रतियोगिता होनी थी वहां पानी भर गया। इस हालात से निपटना बड़ी चुनौती थी। देश की नाक का सवाल था। करीब एक हज़ार मजदूरों को आनन-फानन में बुलवाया गया। रात भर स्टेडियम को दुरुस्त करने का काम चलता रहा। राजीव गांधी अपने दोनों साथियों के साथ रात भर वहां मौजूद रहे। उस दिन उनकी मां और देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का जन्मदिन था। राजीव गांधी उस रात घर नहीं गए। ये एक जुनून था...एक जिम्मेदारी थी...एक चुनौती थी जिसे उन्होंने पूरा किया।
28 साल देश में इतना बड़ा खेल आयोजन हो रहा है। देश का बहुत कुछ दांव पर लगा हुआ है। नाक से लेकर पैसा तक। खेलों पर 28000 करोड़ रुपये (दिल्ली में बुनियादी सुविधाओं के विकास पर खर्च छोड़कर) खर्च हो रहे हैं। एक अध्ययन के मुताबिक ऐसे खेल आयोजन से सिर्फ कुछ लोगों का फायदा होता है और बाकी लोग इसके कर्ज को दशकों तक झेलने के लिए मजबूर होते है। कॉमनवेल्थ गेम्स की कीमत दिल्ली के लोगों को अगले 20-25 वर्षों तक चुकानी होगी।

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