वो रात-दिन मेहनत करता है
खून-पसीने से धरती सींचता है
धरती पर चलाता हल है
फिर भी भूखा सोता है !
उसे भूत याद नहीं !
भविष्य की चिंता नहीं
वर्तमान में जीता है
धरती से अन्न उगाता है
फिर भी भूखा सोता है !
कर्म पथ पर चल पड़ा है
धर्म पथ पर चल पड़ा है
मेहनत को समझा भगवान
फिर भी भूखा सोता है !
दुनिया की चिंता नहीं
चकाचौंध की चाह नहीं
हाड़तोड़ मेहनत को समझा इमान
फिर भी भूखा सोता है !
वो दर्द में जीता है
वो दर्द में मरता है
फिर भी कोई आह नहीं
फिर भी भूखा सोता है !
सबका प्यारा है किसान
पीएचडी की थीसिस है किसान
राजनीतिक दलों का वोट बैंक है किसान
फिर भी भूखा सोता है !
इस जीवन की आपाधापी में
नए दौर की भागाभागी में
सबकी भूख मिटाता है
फिर भी भूखा सोता है !
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4 comments:
बुन्देलखंड में पेट की आग बुझाने के लिए घास की रोटियां खाई जाती है. चूल्हा है ठंडा पड़ा, मगर पेट में आग है, गरमा-गर्म रोटियां बस इक हसीन ख्वाब है.
Katu satya.
वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाएं, राष्ट्र को उन्नति पथ पर ले जाएं।
पीएचडी की थीसिस है किसान
राजनीतिक दलों का वोट बैंक है किसान
फिर भी भूखा सोता है !
ये लाइनें मार्मिक हैं... ऐसे ही लिखिए
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