Thursday, June 3, 2010
अब सेना से भी टूट जाएगा भरोसा ?
शौर्य और अनुशासन का दूसरा नाम है भारतीय सेना। सेना को हमारे देश में बहुत ही सम्मान की नज़र से देखा जाता है। हाल की कुछ घटनाओं ने आम आदमी के इस भरोसे को झकझोर दिया है। जिस सेना को हिंदुस्तान का आम आदमी सम्मान की नज़रों से देखता था उसे आज शक की नज़रों से देख रहा है। क्या वक्त के साथ सेना का चाल, चेहारा और चरित्र बदल गया है या वर्दी पर लगे इक्के-दुक्के दाग ही सेना की छवि को दागदार कर रहे हैं। हाल ही में सेना में इंजीनियर इन चीफ पद पर तैनात लेफ्टिनेंट जनरल ए के नंदा पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगा है। सेना के ही टेक्नीकल सेक्रेटरी की पत्नी ने नंदा पर यह आरोप लगाया है। टेक्नीकल सेक्रेटरी की पत्नी के अनुसार पिछले महीने इजरायल यात्रा के दौरान उसके साथ यौन उत्पीड़न का प्रयास किया गया था। जनरल के बचाव में खुद उनकी पत्नी आ गई हैं और उनका कहना है कि वो अपने पति को अच्छी तरह से जानती हैं। इजरायल यात्रा के दौरान ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। नंदा की पत्नी तो अपने पति के बचाव में आ गईं लेकिन ऐसे में बड़ा सवाल ये है कि कोई दूसरी औरत किसी पर इतना बड़ा इल्जाम बिना वजह क्यों लगाएगी ? सच्चाई जांच के बाद ही पता चलेगी...लेकिन अगर यौन उत्पीड़न के आरोप सच होते हैं तो भी और गलत होते हैं तो भी...दोनों ही हालात में सेना की साख पर बट्टा लगेगा। लेकिन सेना के इतिहास में ये कोई पहला मौका नहीं है जब इस तरह के आरोप सामने आए हैं। इससे पहले मेजर जनरल ए के लाल पर एक महिला अफसर के साथ यौन-उत्पीड़न का आरोप लगा। ए के लाल के बचाव में तब उनकी पत्नी और बेटियां आईं और उन्होंने ने आरोप लगानेवाली महिला अफसर के चरित्र पर ही सवाल उठाए। बाद में जांच हुई...मेजर जनरल दोषी पाए गए। कोर्ट मार्शल हुआ और सेना से बर्खास्त कर दिए गए। नौसेना के कमोडोर सुखजिंदर सिंह भी कुछ इसी तरह के आरोप में फंस हैं। उन पर आरोप है कि 2006 से 2008 के दौरान एक रूसी महिला से उनके संबंध थे। वह गोर्शकोब पनडुब्बी की मरम्मती परियोजना के प्रमुख थे। हाल ही में सुकना जमीन घोटाला सामने आया। इसमें तत्कालीन सैन्य सचिव लेफ्टिनेंट जनरल अवधेश प्रकाश और सुकना के पूर्व कोर कमांड लेफ्टनेंट जनरल पी के रथ के खिलाफ कोर्ट मार्शल चल रहा है। इसी मामले में सेना के दो बड़े अफसरों को प्रशासनिक कार्रवाई का भी सामना करना पड़ा है। इन सभी को सुकना में सैन्य छावनी के पास की जमीन बेचे जाने के लिए एनओसी देने में धांधली करने का दोषी पाया गया है। बात यहीं खत्म नहीं होती 2003 में कर्नल एच एस कोहली को सेना से निकाल दिया गया। उन पर आरोप था कि मेडल लेने के लिए उन्होंने झूठे बहादुरी के सबूत दिए। जांच में पाया गया कि कोहली ने दक्षिण असम के कछार जिले में मरे हुए नागरिकों पर टोमैटो केचअप डाल कर उन्हें मुठभेड़ में मरे आतंकवादी के रूप में पेश किया था। इस गुनाह में मेजर रविंदर सिंह और ब्रिगेडियर सुरेश राव भी शामिल थे। ताबूत घोटाले की आंच ने भी सेना की छवि पर बट्टा लगाया है। कारगिल युद्ध के बाद 2002 में सामने आए ताबूत घोटाले के सिलसिले में सेना के एक तत्कालीन कर्नल एफबी सिंह के खिलाफ आरोपपत्र दायर किया गया था। रिटायर्ड कर्नल एस.के. मलिक और रिटायर्ड मेजर जनरल अरुण रोवे का नाम भी आरोपपत्र में शामिल था। कहीं ऐसा तो नहीं कि सेना के कड़े अनुशासन की आड़ में अनगिनत मामले दबे पड़े हों और इंसाफ के लिए छटपटा रहे हों... सेना से लोगों का भरोसा नहीं टूटना चाहिए...लेकिन कड़े अनुशासन की आड़ में किसी के साथ नाइंसाफी भी नहीं होनी चाहिए। सच चाहे कितना भी कड़वा हो...दुनिया के सामने आना चाहिए।
Subscribe to:
Posts (Atom)